गेहूं की फसल पीला रतुआ की कैसे करें रोकथाम, येलो रेस्ट की करें पहचान व उपचार
किसान साथियों गेहूं की फसल में पीला रतुआ की पहचान और उसकी रोकथाम करना बहुत ही आवश्यक है। हम जानेंगे कि पीला रतुआ कैसे फैलता है और इसको रोकने के किस क्या उपाय कर सकते हैं।
Yellow Rust In Wheat : किसान साथियों गेहूं की फसल में यह रोग 40 से 50 दिन की फसल होने पर शुरू हो सकता है। गेहूं की फसल में पीला रतुआ यानी येलो रस्ट रोग से बचाना बेहद ही जरूरी है। देश भर में बात करें तो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गेहूं की खेती की जाती है व इसके अलावा अन्य राज्यों में भी गेहूं की पैदावार होती है। परंतु यह है प्रदेश के उत्तर भारत के राज्यों में गेहूं में ज्यादा नुकसान पहुंचता है। इसलिए किसान इसका सही समय पर इलाज कर लें, तो अच्छी पैदावार ले सकते हैं।
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रवि के इस सीजन में गेहूं की फसल मुख्य फसल के रूप में मानी जाती है। इस समय बात करें तो गेहूं 40 से 50 दोनों का हो चुका है। ऐसे में किस को गेहूं की खेती में अनेक प्रकार से होने वाले रोगों की पहचान करना जरूरी है। इस समय प्रदेश के कई हिस्सों में पीला रतुआ रोग देखने को मिल रहा है। इसी को लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के द्वारा गेहूं की फसल में होने वाले येलो रस्ट रोग ( Yellow Rust in Wheat) को लेकर किसानों को एडवाइजरी भी दी गई है। जिसमें उन्होंने बताया कि गेहूं की खेती में होने वाले येलो रसट रोग यानी पीला रतुआ के बारे संपूर्ण जानकारी दी।
बता दे की यह गेहूं की फसल को बहुत जल्द नुकसान पहुंचता है। इस रोग के चलते गेहूं की फसल में 70 से 100% भी नुकसान हो सकता है। इसलिए किसान भाई अपनी फसल को नुकसान होने से बचने के लिए समय पर देखभाल व रोग की पहचान अवश्य कर ले। जिससे आपकी पैदावार अच्छे से हो व किसान फायदे में रहे तो चलिए जानते हैं। इस लेख के माध्यम से कैसे करें उपाय।
पीला रतुआ कैसे फैलता है व इसकी पहचान क्या है?
प्रदेश के जीने इलाकों में धान की खेती की जाती है। वहां जमीन में ज्यादा नामी देखने को मिलती है। ऐसे में येलो रस्ट रोग स्थान पर ज्यादा नमी होती है। वहां ज्यादा फैलता है। पिछले कुछ सालों में पीला रतुआ रोग नामक बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है।
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अपनी फसल में इस रोग की पहचान करने के लिए आप देख सकते हैं। आपकी गेहूं के पौधे की पत्तियों पर ऊपर पीले रंग की धारियां दिखने लगेगी। फिर यह कुछ समय बाद पतियों में पीला पाउडर जैसा हो जाता है। इसे देखने पर ऐसा लगता है कि पीसी हुई हल्दी है।
बता दे की कई बार गेहूं की पत्तियों का पीलापन कुछ अन्य कर्म से भी हो जाता है इसलिए रोग की पहचान करना जरूरी है क्योंकि पौधे में कई बार ज्यादा पानी देने से भी इसका रंग पीला पड़ जाता है और कुछ पोषक तत्वों की कमी भी गेहूं में पीलापन दिखा सकती है इसके अलावा जमीन में ज्यादा नमी के साथ नमक की मात्रा होने पर गेहूं में पीलापन दिखाई पड़ सकता है।
पीला रतुआ किस तापमान में होता है
किसान भाइयों किसी भी फसल में इसका उत्पादन तापमान पर भी निर्भर करता है गेहूं की फसल में यह रोग हल्की बारिश व रात का तापमान में 7 से 13 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है या अधिकतम 15 से 24 डिग्री सेल्सियस होने पर भी येलो रस्ट रोग गेहूं की फसल में संभावना हो सकता है।
गेहूँ की फसल में पीलापन कैसे दूर करें या पीला रतुआ रोग
जैसा कि हमने ऊपर इस पोस्ट में बताया कि इस रोग की पहचान के पश्चात ही आप किसी प्रकार का उपचार करें। क्योंकि बिना पहचान के किसी भी रसायन या दवाई का प्रयोग करने से आपकी फसल को नुकसान भी हो सकता है। इसलिए समय पर उपचार व फसल को दिए जाने वाले पोषक तत्वों को जानकारी से प्रयोग करें।
बता दे की विशेषज्ञ यह जानकारी से सलाह लेकर अपने गेहूं की फसल में सबसे पहले दिए जाने वाले पोषक तत्वों की पूर्ति करें अगर इसके पश्चात भी आपको येलो रस्ट रोग दिखाई पड़ता है तो इसके लिए किसी अन्य तरह के रसायन या सप्रे की सलाह दी जाती है इस रोग से आपका गेहूं के उत्पादन में भी असर बहुत ज्यादा पड़ता है।
अपनी फसल में इस रोग की पहचान के बाद अपनी गेहूं की फसल में टिल्ट प्रॉपिकोनाजोल 25 इसी की मात्रा का 0.1% का 30 मिलीलीटर रसायन 30 लीटर पानी में घोलकर प्रति कनाल के हिसाब से छिड़काव कर सकते हैं। फिर इसके पश्चात आप 15 दिन तक इसके रिजल्ट को देखें व 15 दिन की पश्चात इसी प्रकार से दोबारा इसका छिड़काव कर दे।
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