धान के रोग एवम् उपाय: धान का झोंका आभासी कंड और तना छेदक, गुलाबी तना छेदक भूरा धब्बा
धान के रोग एवम् उपाय :- धान में आमतौर पर प्रमुख किट की बात करे तो मादा कीट धान की पत्तियों की सिराओ पर समूह के रूप में अंडे देती है। यही कीट 1 हफ़्ते में सुंडिया बाहर निकल जाति है एवम् जो मुलायम पतिया है उनको खाने लगती है।
धान के रोग एवम् उपाय। धान के प्रमुख कीट
धान के प्रमुख रोग:- धान में कई प्रकार के रोग हो जाते है उनमें से प्रमुख रोगों की बात करे तो भूरा धब्बा, सीथ ब्लास्ट, धान झोका, आभासी कड, तना छेदक एवम् गुलाबी तना छेदक आदि प्रमुख हैं।
धान की खेती करते समय अनेक रोगों का सामना करना पड़ता है एवम् ये रोग अनेक प्रकार से धान में नुकसान पहुंचा सकते है। हालांकि चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकी धान की फ़सल को बचाने हेतू अनेक उपाय किए जा सकते है।
उच्च बीज का चयन : धान की खेती हेतू सबसे उच्च गुणवत्ता का चयन एवम् सरक्षण काफ़ी महत्वपूर्ण है। आपको इस हेतू उच्च क्वॉलिटी का बीज लेना काफी महत्वपूर्ण है एवम् इसके बीज की गुणवत्ता भी होगी चाइए।
मृदा संरक्षण :- धान की अच्छी उत्पादकता हेतू सबसे पहले खेत को को अच्छे से सुखा लें एवम् मृदा का सरंक्षण करे। अच्छी मिट्टी में धान की फसल रोगों से रोग प्रतिरोधकता अच्छी रहती है।
बुवाई:- धान की अच्छी पैदावार हेतू समय पर खेत की बुवाई काफी महत्वपूर्ण है। समय पर खेत की जुताई करने से फसल को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होती है एवम् रोगों का फैलाव नही होता।
कीटों से संवर्धन: धान की अच्छी खेती हेतु एवम् बीमारियों से छुटकारा दिलाने हेतू उचित कीटनाशक का प्रयोग काफ़ी महत्वपूर्ण रहता है, इस हेतू सावधानी से कीटो का प्रयोग करे।
फसल की देखभाल: अच्छा उत्पादन के लिए समय पर खेतो की देखभाल भी बहुत जरुरी है। पर्णछाद अंगमारी जैसे अनेक रोगों के लक्षण को पहचान कर अच्छे से नियंत्रण समय पर करना काफ़ी महत्वपूर्ण है।
धान में तना छेदक रोग:-
यह कीट की सुंडी अवस्था से ही क्षति पहुंचाता है। यह कीट अंडे से निकलते ही मध्य कालिकाओ की पतियों में घुसकर हानि पहुंचाता है एवम् धीरे धीरे पौधे के तने को खा जाता है। पौधो को बढ़वार के समय बालियां नही निकलती। बाली की अवस्था में इसमें वालिया नही निकल पाती यदि निकलती है तब भी सफेद बालियां निकलती है। जो बगैर दानों की होती है।
कीट प्रबंधन:- धान की बुवाई से पहले पुरानी फसल को जमीन के बिलकुल पास से काटना चाहिए एवम् ठूंठ को खेत से बाहर निकाल देवे और जला देवे। इसके बाद खेत में जिंक सल्फेट+बुझा हुआ चुना (100 ग्राम+50 ग्राम) प्रत्येक नाली में 20 लीटर पानी का घोल बनाकर खेत में छिड़काव कर देवे। जब पोध की रोपाई करते हैं तब ऊपर के कुछ हिस्से को काट दे ताकी किट बाहर निकल जाए। नीम एवम् धतूरे के पते को 20 लीटर पानी में तबतक उबाले जब यह मात्र 5 लीटर तक न रह जाए। इसके बाद 10 लीटर गोमूत्र के साथ मिलाकर खेत में छिड़काव कर देवे।
पत्ती लपेटक कीट
धान की पत्तियों में मादा कीट शिराओं के पास समूह के रुप में अंडे देती हैं। इन अण्डों से 1 हफ़्ते में सूड़ियां बाहर निकलती हैं। ये सूड़ियां पहले मुलायम पत्तियों को खाने लगती हैं एवम् इसके बाद अपने लार से रेशमी धागा बनाकर पत्ती को किनारों से मोड़ देती हैं और अंदर से पूर्ण रूप से खा जाति है।
धान की गंधीबग कीट
इसका वयस्क लम्बा एवम् पतले और हरे भूरे रंग का उड़ने वाला कीट होता है, इस कीट की पहचान इससे आने वाली गंध से कर सकेंगे। इसके व्यस्क एवम् शिशु दूधिया दानों को चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके कारण दानों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और दाने खोखले हो जाते हैं।
कीट का प्रबंधन कैसे करें
यदि धान के पौधे पर कीट की संख्या एक या एक से अधिक दिखाई दे तो मालाथियान 5 फीसदी स्प्रे घोल की 500-600 ग्राम मात्रा प्रत्येक नाली की दर से छिड़काव करें। खेत के मेड़ों/बाउंड्री पर उगे घास की सफाई जरुर कर देवे। क्योंकि इन्ही जगहों पर उगे खरपतवारों पर ये कीट पनपते रहते हैं और दुग्धावस्था में फसल पर आक्रमण करते हैं। 10 फीसदी तक पतियां खराब हो जाति है इस पर सही समय पर केल्डान 50 % घुलनशील घोल का दो ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर देवे।
भूरी चित्ती कीट
इस रोग के लक्षण प्रमुख समस्या पत्तियों पर छोटे- छोटे भूरे रंग के धब्बे बनकर दिखाई देतें है। ज्यादा संक्रमण होने पर ये धब्बे आपस में मिल कर पत्तियों को सम्पूर्ण सूखा देते हैं और बालियां संपूर्ण से बाहर नहीं निकलती हैं। धान में कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप अधिक दिखाई देता है।
इस रोग से छुटकारा पाने हेतु बुवाई से पहले बीज को ट्राईसाइक्लेजोल दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर देवे, पुष्पकाल की अवस्था में जरुरत पड़ने पर कार्बेन्डाजिम का छिड़काव जरुर करें, रोग के लक्षण दिखाई देने पर 10 से 15 दिन के अन्तराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15 से 20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
भूरी चित्ती रोग
भूरी चित्ती रोग धान में एक महत्वपूर्णप्रमुख कीट रोग होता है जिससे फसल का पउत्पादन कम हो जाता है, इस रोग के लक्षण प्रमुख्त पत्तियों पर छोटे छोटे भूरे रंग के धब्बों रूप में दिखाई देने लगता है. अधिक संक्रमण होने पर ये धब्बे पत्तियों को सूखा देते हैएवम् बालियां पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाती। यह रोग मुख्यत धान में कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में अधिक प्रसारित होता है।
रोकथाम एवम् उपाय
इस रोग से छुटकारा पाने हेतु बुवाई से पहले बीज को ट्राईसाइक्लेजोल दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर देवे, पुष्पकाल की अवस्था में जरुरत पड़ने पर कार्बेन्डाजिम का छिड़काव जरुर करें, रोग के लक्षण दिखाई देने पर 10 से 15 दिन के अन्तराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15 से 20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
पर्णच्छाद अंगमारी कीट
पर्णच्छाद अंगमारी रोग भी चावल के पौधों को प्रभावित करता है और उनके विकास को रोकता है। इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
रोकथाम एवम् उपाय
इस कीट रोग को रोकने हेतू संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवम् पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है. बीज को थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम दर से उपचारित करके बुवाई के साथ दिया जा सकता है। जुलाई महीने में रोग के लक्षण दिखाई देने पर इसमें मैकोजेब का छिड़काव कर देवे।
आभासी कंडरोग
आभासी कंड रोग भी धान का फफूंदीजनित रोग है और फसल को काफ़ी नुकसान पहुंचाता है. रोग के लक्षण पौधों में बालियों के निकलने के तुरंत बाद ही स्पष्ट होते हैं। रोगग्रस्त दाने पीले से लेकर संतरे के रंग के दिखाई देते हैं। जो बाद में जैतूनी एवम् काले रंग के गोलों में बदल जाते हैं।
रोकथाम एवम् उपाय
इस रोग की रोकथाम हेतू फसल काटने के तुरंत बाद अवशेषों को जला देवे एवम् खेतों में अधिक जलभराव न होने दे, रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत इसमें प्रोपेकोनेजोल 20 मिलीलीटर मात्रा को 15 से 20 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दे ताकी रोग पर काबू पाया जा सके।
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