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दलहन तिलहन में ये कीट बनते हैं फसल की बर्बादी का प्रमुख कारण इस प्रकार करें कीटों का उपचार

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दलहन तिलहन में कीटों का उपचार कैसे करें: उतर से दक्षिण भारत में खरीफ हो या रबी सीजन दोनो ही में भारत के सभी क्षेत्र में दलहन एवम् तिलहन की खेती की जाती है, यहां तक कि प्रत्येक घर की रसोई में इनका महत्वपूर्ण स्थान है, बुवाई के बाद भी इन फसलों की देखरेख काफी महत्वपूर्ण हो जाती है ताकी बगैर बीमारी के अधिक पैदावार ली जा सके।

 

दलहन तिलहन में कीटों का उपचार कैसे करें एवम् कीटों का उपचार।

 

भारत एक प्रमुख दलहन एवम् तिलहन का उपभोगता होने के साथ साथ प्रमुख आयातक देश भी है ऐसी स्थिति में बुवाई के बाद फसलों की देखरेख करना महत्वपूर्ण हो गया है, इसकी देखरेख बुवाई के समय से ही शुरु कर देनी चाहिए ताकि बाद में कोई रोग ना हो एवम् अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सके, बुवाई के पहले इनके बीज उपचार हेतु 4 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज को ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना जरुरी है । यह दवाई जैविक रोगों से बचाती है, इसके अलावा दलहनी फसलों हेतु प्रमूख उपचार की बात करें तो राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना काफ़ी फायदेमंद साबित होगा। यह एक जैव पौध-वृद्धिकारक माना गया है. जिससे यह पौधों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन के अवशोषण में भी सहायक होता है ।

 

कृषि विभाग द्वारा अनुसंशित राइजोबियम द्वारा बीजोपचार के लिए 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से करना उपयुक्त है, बीजोपचार हेतू 50 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में घोल बनाकर 250 ग्राम राइजोबियम मिला दे एवम् बाल्टी में बीज डालकर मिलाएं, जब बीजों पर लेप चिपक जाए उसके बाद 3 से 4 घंटे छाया में सुखा लें एवम् उसे फेला दे।

इस प्रकार करें कीटों का उपचार

उखेड़ा रोग उपचार एवम् लक्षण
यह रोग जीवाणु जनित रोग है, यह रोग उस समय फैलता है जब पोधा 2 पतियां निकल जाती है, इसके उपचार हेतु किसानों को प्रतिरोधी किस्मों के चयन के साथ साथ नियमित फसलचक्र को अपनाना चाहिए या फिर बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ।

पीला मोजैक कारण एवम् निवारण

पीला मोजैक को विषाणुजनित रोग माना जाता है, जो सफेद मोतियों द्वारा फैलता है । इसका प्रमुख कारण पत्तियां पीली पड़ जाती है। यह रोग प्रमुख मूंग एवम् उड़द जैसी फसलों में फैलता है, जब किसी खेत में सफेद मक्खी दिखने लगे उस समय किसान साथी मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 750 मि.ली./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।

पाउडरी फफूंदी कारण एवम् निवारण

इस रोग का प्रमुख लक्षण पौधो की पत्तियों, फलियों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई पड़ता है। पत्तियों, फलियों एवं तनों पर पीले, गोल तथा लम्बे धब्बे पाए जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत कैराथेन अथवा 0.3 प्रतिशत सल्फेक्स का छिड़काव करना चाहिए. इनके प्रबंधन के लिए रोगरोधी किस्में लगाएं.

सफेद मक्खी कारण एवम् निवारण

सफेद मक्खी फसलों की पत्तियों एवं कोमल तनों का रस चूसता है. जिससे पौधा कमजोर होकर सूखने लगता है एवम् यह कीट एक विषाणु वाहक कीट भी है, इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 750 मि. ली./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

गॉल मिज रोग कारण एवम् निवारण

यह कीट के पिल्लू फसल की पुष्प कलियों के अंदर रहते हुये आंतरिक भाग को नुकसान पहुंचाता है जिसके कारण कीट ग्रसित कलियों से फूल नहीं खिल पाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर/हेक्टेयर की दर से मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए

 

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