Mustard Cultivation:ये है सरसों की किस्में जो कम समय में देगी भरपूर पैदावार। जानें सरसों का सबसे अच्छा बीज
Mustard Cultivation: सरसों की खेती भरपूर मात्रा में भारत में की जाती है, इसी को ध्यान में रखते हुए आज सरसों की किस्में जो 100 दिन में पककर भरपूर पैदावार देती है आदि के बारे में विस्तृत जानकारी आप के लिए लेकर आए हैं। आपको बता दे कि पिछले कुछ समय से राज्य सरकार हो चाहे केंद्र सरकार समय-समय पर तिलहन फसलों के रकबे में बढ़ोतरी करने के लिए अनेक प्रकार की योजना चलती रहती है, क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी में तेल-तिलहन आदि की जरूरत एवं मांग काफी बढ़ गई है, मांग को पूरा करने हेतु सरकार कई प्रकार की योजनाएं चल रही है, ताकि अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सके।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में तीन प्रकार की विभिन्न मौसम में खेती की जाती है, जिनमें खरीफ,रवि एवं जायद प्रमुख है, बात करें तिलहन की फसलों में तो मुख्यतः भारत में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, सूरजमुखी, तिल, तोरिया,अलसी आदि तिलहन फसलों की खेती की जाती है, क्षेत्रफल एवं उत्पादन के हिसाब से भारत में सबसे ज्यादा सरसों मूंगफली एवं सोयाबीन की खेती की जाती है। दूसरी और प्रमुख उत्पादक राज्यों में राजस्थान मध्य प्रदेश हरियाणा उतर प्रदेश पंजाब बिहार गुजरात महाराष्ट्र उड़ीसा आदि का स्थान इनमे आता है जहा तिलहन फसल की खेती बहुतायत में की जाती है।
भारत में सरसों की खेती की बुवाई
भारत में सरसों की बुवाई रवि सीजन में शुरू की जाती है, इसकी खेती की शुरुआत खरीफ सीजन में उगाई गई फसलों की कटाई के बाद की जाती है, बात करें रवि सीजन की प्रमुख फसलें तो सरसों गेहूं एवं चना आदि की जाती है,सरसों की बुवाई का उचित समय सितंबर से शुरू होकर अक्टूबर के लास्ट तक उत्तर भारत में सही माना गया है, वहीं कुछ स्थानों पर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक भी कर सकते हैं, यह फसल प्रमुख नगदी फसल मानी गई है, इसमें कम पानी की जरूरत होती है, एवं उत्पादन भी अच्छा होता है।
सरसों के लिए उपयुक्त भूमि, सिंचाई, तापमान एवम् उत्पादक राज्य
ज्यादा उपजाऊ जमीन की आवश्यकता भी नहीं करती इसलिए इसे सभी प्रकार की जमीन में उगाया जा सकता है इसके लिए भौतिक समय तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास उपयुक्त माना गया है वही पकते समय 15 से 20 डिग्री सेल्सियस उचित माना गया है, इसके लिए पहली सिंचाई 30 दिन बाद उपयुक्त मानी गई है वही उत्पादन की बात करें तो पहले स्थान पर राजस्थान उसके बाद हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश एवम् मध्य प्रदेश गुजरात का स्थान आता है इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भी अच्छा उत्पादन लिया जाता है
सरसों की किस्में। सबसे अच्छा सरसों का बीज कोन सा है?
कम समय में पकने वाली सरसों की किस्में आईसीएआर यानी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है, जो काफ़ी अच्छा उत्पादन देने के लिए जानी जाती है, इसकी सिफारिश कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बार बार किया जाता रहा है, तो चलिए जानते हैं टॉप सरसों की किस्में जो अधिक उत्पादन देने में सक्षम है…
सरसों की किस्म पूसा बोल्ड:-
विशेषज्ञों के अनुसार यह सरसों की किस्म काफी उन्नत किस्म में से एक मानी गई है जो तकरीबन 100 से 140 दिनों में पट जाती है यह किम राजस्थान गुजरात दिल्ली महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर की जाती है एवं उत्पादन के हिसाब से यह प्रति हेक्टेयर 20 से 25 कुंतल देने में सक्षम है वही तेल की मात्रा की बात करें तो यह 40 फ़ीसदी के आसपास रहता है।
सरसों की किस्म पूसा 28:-
इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ICAR)द्वारा विकसित यह सरसों की नई किस्म है एवं यह पकाने में 110 दिन का समय लेती है वही उत्पादन की बात करें तो यह 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने में सक्षम है इसमें तेल की मात्रा तकरीबन 21 फ़ीसदी तक बताई गई है जलवायु एवं मिट्टी के आधार पर यह किस राजस्थान पंजाब दिल्ली हरियाणा एवं जम्मू कश्मीर में रिकमेंड की गई है।
सरसों की किस्म राज विजय 2:-
सरसों की यह उन्नत किस्म अधिक तेल की मात्रा के लिए माना गया है, क्योंकि इसमें तेल की मात्रा 40 फीसदी के आसपास रहती है l, एवं उत्पादन में यह भी से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देने में सक्षम है, यह पकने में तकरीबन 120 से 125 दिन का समय लेती है, प्रमुख रूप से यह किस्म यूपी एवं मध्य प्रदेश के इलाकों में बड़े पैमाने पर की जाती है।
सरसों की किस्म पूसा RH 30:-
इस किस्म की खेती मुख्य रूप से पंजाब हरियाणा पश्चिमी राजस्थान के खेतों में की जाती है यह पकाने में 120 दिन का समय लेती है एवं उत्पादन यह 15 से 20 क्विंटल तक देने में सक्षम है इसमें तेल की मात्रा तकरीबन 39 फ़ीसदी तक मानी गई है।
सरसों किस्म पूसा 21:-
यह किम प्रमुख रूप से राजस्थान पंजाब दिल्ली एवं यूपी के क्षेत्र में उगाई जाती है हालांकि यह किस्म पकने में अधिक समय लेती है एवं इसके पकने का समय तकरीबन 130 से 150 दिन का माना गया है एवं उत्पादन के लिहाज से यह किस्म 18 से 22 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक देने में सक्षम है, वही तेल की मात्रा की बात करें तो यह किस्म 37 से 40 फ़ीसदी तक देती है
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